भगवान श्री झूलेलाल साईं जी का चालीहा महोत्सव प्रारंभ।

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भगवान झूलेलाल जी की आराधना में 40 दिन तक मनाया जाने वाला चालीहा महोत्सव16 जुलाई से 25 अगस्त तक मनाया जाएगा चालिहा महोत्सव चालिहा पर्व की सभी को हार्दिक बधाई शुभकामनाएं जब जब भी धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि हुई है तो उसका अंत करने के लिए भगवान ने किसी न किसी मसीहा के रूप में जन्म लिया है और लोगों को सत्य का मार्ग दिखाया है
विक्रम संवत 1007 मै सिंध के प्राचीन नगर ठठ्ठा मैं मिरख शाह नामक एक क्रूर शासक था उसने पूरे सिंध में धर्म परिवर्तन के लिए हिंसा का रास्ता अपनाया और पूरे राज्य में एलान करवा दिया कि इस्लाम धर्म को स्वीकार न करने वाले को कठोर से कठोर सजा दी जाएगी उसकी समस्त संपत्ति को जप्त कर लिया जाएगा उसके अत्याचारों से भयभीत जनता ने सिंधु नदी के किनारे पर तीन रोज तक जल त्याग कर सच्ची लगन से प्रभु का ध्यान किया पौराणिक कथा है कि एकाएक जल से वरुण देवता प्रकट हुए और उन्होंने लोगों को सांत्वना देते हुए कहा कि तुम्हें मिरखशाह से छुटकारा दिलाने के लिए जल्दी ही नसरपुर में जन्म लूंगा
एक दिन 950 ईसवी विक्रम संवत 1007 की चेत्र शुक्ला द्वितीय शुक्रवार के दिन नसरपुर में ठाकुर रतन राय की पत्नी माता देवकी के गर्भ से भगवान झूलेलाल जी का जन्म हुआ झूलेलाल जी की चमत्कारिक शक्तियों आदि के बारे में अनेक घटनाएं प्रचलित है
जब झूलेलाल जी 8 वर्ष के हुए तो उनके पिता रतन राय ने उन्हें विद्या अध्ययन के लिए एक विद्वान के मार्गदर्शन में शिक्षा दिलाने का विचार किया किंतु बालक से थोड़ी देर बातचीत करने के उपरांत विद्वान ने अपना निष्कर्ष निकालते हुए रतन राय को बताया कि आपका बालक पहले से ही सब कुछ पढ़ चुका है अल्पायु में ही झूलेलाल जी को सभी ग्रंथों का ज्ञान हो गया है बालक की उम्र जियो जियो बढ़ती गई अत्याचारी बादशाह मिरखशाह को भयानक सपने आने लगे सपनों से घबराकर बादशाह ने अपने मंत्री यूसुफ वजीर को बालक की तुरंत हत्या करने का आदेश दिया मंत्री ने बादशाह का आदेश पाने के उपरांत झूलेलाल जी के घर जाकर जैसे ही उसे जहर से भरा प्याला पीने को दिया तो बालक ने फुख से प्याले को ही गायब कर दिया मंत्री यह देखकर घबराहट में भाग खड़ा हुआ और उसने मिरखशाह को जाकर पूरी घटना सुनाई लेकिन बादशाह नहीं माना उसने मंत्री को किसी भी सूरत में झूलेलाल को पकड़कर लाने का आदेश दिया मंत्री को अपने बचने का कोई रास्ता ना सूजने पर वह दरिया किनारे पर झूलेलाल को याद करने लगा झूलेलाल जी नीले घोड़े पर सवार होकर प्रकट हुए मंत्री की व्यथा सुनकर झूलेलाल मिरखशाह की दरबार में पहुंचे झूलेलाल को बादशाह के सैनिकों ने घेराबंदी करके पकड़ने का प्रयास किया लेकिन वह सब की नजरों से ओझल हो गए
अब झूलेलाल ने मिरख बादशाह की चुनौतियों का सामना करने के लिए वीर हिंदुओं की भर्ती करके नौसेना तैयार कर ली झूलेलाल जी के संचालन से प्रशिक्षित प्राप्त हुए नो सैनिक इतने कुशल हो गए थे एक बार मिरखशाह के सिपाहियों ने ने झूलेलाल जी को सिंधु नदी में जाकर पकड़ने का प्रयास किया तो देखते ही देखते मिरखशाह सारे सैनिकों को पानी में डुबो दिया
भगवान झूलेलाल जी की चमत्कारिक शक्तियों कुशल नो सैनिकों के कारण बादशाह को भयंकर सपने दिखाई देने लगे जैसे कि झूलेलाल जी और उनके सैनिक महल में घुसकर तख्त के नीचे से खींच कर उसे मार रहे हैं मिरखशाह के कई सैनिक भगवान झूलेलाल जी की शरण में आ गए उसके उपरांत भी मिरखशाह नहीं माना तो उसे परास्त करने के लिए भगवान झूलेलाल जी ने अपने वीर सैनिकों के माध्यम से वायु अग्नि देव को भेजा तो तिरव गति से रेत उड़ने लगी बादशाह के सिपाहियों की आंखें अंधी होने लगी इधर-उधर भागने लगे बादशाह का महल जलने लगा तो झूलेलाल जी ने मिरखशाह को महल में जाकर परास्त किया झूलेलाल जी ने अपने वीर सैनिकों के साथ मिलकर अत्याचारी बादशाहम़ मिरख शाह का पतन कर देने के पश्चात उसे जीवन दान देते हुए उसे शिक्षा दी की हिंदू और मुसलमान आंख के दो तारे हैं मतभेद मतभेद छुआछूत ऊंच-नीच की दीवारें तोड़कर प्रजा से भाईचारे की भावना का संचार करना ही सबसे बड़ा धर्म है ईश्वर सबका एक है मिरखबादशाह को शिक्षा देने के पश्चात जल ज्योति की पूजा करने दीन दुखियों की मदद करने का संदेश देखकर भगवान झूलेलाल जी सिंधु नदी में अंतर्ध्यान हो गए चालिहा महोत्सव तब से अब तक हिंदू धर्म के रक्षक भगवान झूलेलाल जी की याद में प्रतिवर्ष सिंधी समाज द्वारा संपूर्ण भारत में विदेशों में बड़ी धूमधाम से चालिहा महोत्सव मनाया जाता है लाल साईं को प्रसन्न करने के लिए भक्तों ने 40 दिन तक वरुण देवता की निसरपुर में सिंधु के तट पर पूजा आराधना की थी उसी परंपरा को कायम रखते हुए तब से प्रत्येक वर्ष लाल सई झूलेलाल का चालिहा पर्व भारत सहित विदेशों में भी सिंधी हिंदुओं द्वारा भक्ति व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है 40 दिन तक पूजा साधना कर लाल साईं झूलेलाल का स्तुति गान करते हैं प्रतिदिन मंदिर में जाकर आरती पल्लव के साथ पूरी निष्ठा के साथ भगवान झूलेलाल जी की पूजा करते हैं 40 में दिन तक भक्तजन दाढ़ी नहीं बनवाते हैं मांसाहार तामसिक भोजन को ग्रहण नहीं करते हैं विषय विकारों से दूर रहकर साबुन व तेल का भी प्रयोग नहीं करते रात में जमीन पर सोते हैं 40 दिन की पूजा की पूजा की समाप्ति के पश्चात 40 घंडे ज्योतियां मीठे आटे के बने हुए पिंड बहराने अन्य फलों के साथ विधि विधान से किसी समुद्र नदी तालाब अथवा कुए जहां शुद्ध जल हो उन वस्तुओं को प्रवाहित करते हैं इस समस्त पूजा विधि का नाम है चालीहा
चालिहा प्रत्येक वर्ष कर्क संक्रांति के पहले दिन से आषाढ़ मास में आरंभ किया जाता है तथा सिह संक्रांति मैं जब 40 दिन पूरे होते हैं तब श्रावण मास में इसे समाप्त किया जाता है इस पर्व पर सभी जगह विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है जिनमें झूलेलाल की सवारी के साथ-साथ प्रसाद सुखो सेसा वितरित किया जाता है महिलाएं झूलेलाल जी के मंदिरों नदियों सागर के किनारे जाकर ज्योति जला कर भगवान झूलेलाल जी की आराधना करती है शोभायात्रा में भगवान झूलेलाल जी के आयो लाल झूलेलाल के उद्घोष के साथ भक्तजन शहनाई बैंड बाजों के साथ धार्मिक धुनों पर भगवान झूलेलाल जी की आराधना करते हुए झूमते हुए चलते हैं शोभा यात्रा नदी किनारे तालाब किनारे समुद्र किनारे पर पहुंचती है वहां पर भी भगवान झूलेलाल जी ज्योति जला कर भगवान झूलेलाल जी की पूजा अर्चना कर शोभा यात्रा समाप्त की जाती है।

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