1 नवम्बर/बलिदान-दिवस सन्त कंवरराम का बलिदान सिन्ध की भूमि ने अनेक वीर, भक्त एवं विद्वान् भारत को दिये हैं। उनमें से ही एक थे सन्त कँवरराम जी। 13 अप्रैल, 1885 को बैसाखी के पावन पर्व पर ग्राम जरवार, तहसील मीरपुर माथेलो, जिला सक्खर में उनका जन्म हुआ। इनके पिता श्री ताराचन्द्र एवं माता श्रीमती तीर्थबाई थीं। श्री ताराचन्द्र एक छोटी दुकान चलाते थे। सिन्ध के परम विरक्त सन्त श्री खोतराम साहिब के आशीर्वाद से उनको पुत्र प्राप्ति हुई थी। सन्त जी ने बताया कि कमल के फूल की तरह यह बालक संसार में रहकर भी संसार से अलिप्त रहेगा। बाल्यावस्था से ही कँवरराम का मन प्रभुभक्ति में बहुत लगता था। घर में बहुत निर्धनता थी, अतः माता उन्हें कुछ चने उबालकर बेचने को दे देती थी। उनकी आवाज बहुत मधुर थी। एक बार गाँव में सन्त खोतराम साहिब के पुत्र सन्त रामदास जी का कार्यक्रम हो रहा था। उन्होंने कँवरराम को बुलाकर कुछ भजन सुने और सारे चने प्रसादस्वरूप भक्तों में बँटवा दिये। जब उन्होंने उन चनों का मूल्य पूछा, तो कँवरराम ने पैसे लेने से मना कर दिया। इससे सन्त जी ने मन ही मन उसे अपना उत्तराधिकारी मान लिया। हमारे संत शिरोमणि की विख्याति पूरे सिंह प्रति से हिंद प्रांत तक फैली हुई थी 1939 में जब वह है सखर के लिए रुख स्टेशन पर रेल में चढ़े खिड़की पर बैठे तब उन्हें समुदाय विशेष के लोगों ने गोलियां मार कर हत्या कर दी तब से आज तक हम लोग 1 नवंबर शहादत दिवस के रूप में मानते आ रहे हैं और हमारे संत शिरोमणि श्री भगत कौन राम जी महाराज को याद करते हैं।
1 नवंबर बलिदान दिवस संत शिरोमणि भगत कंवर राम जी महाराज
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