पथभ्रष्ट होता हुआ युवा मन। रेखराज चौहान

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*पथभ्रष्ट होता हुआ युवा मन- रेखराज चौहान*
कम समय में ज्यादा पाने की लालसा कम उम्र में ही सोशल मीडिया से और नेट से और संगति से और अपने ही गौरव मई परिवार जनों के पद के अभियान में व अपने बड़े भाई बहनों के पद के अभियान में इसका दुरुपयोग करते हुए आज का युवा मन नकारात्मकता की ओर राह पकड़ रहा है सोशल मीडिया का सदुपयोग करने वाले उससे ज्ञानवर्धक चीज लेकर कुछ बन जाते हैं और उसका दुरुपयोग करके उसी से देखकर मन को विचलित कर कुसंगति में पड़कर वैसे ही अनुभव लेने के चक्कर में अपना जीवन गवा बैठते हैं अत्यधिक नकारात्मक चित्रण को देखकर पढ़कर सुनकर यूवामन यहां तक की कच्ची उम्र की लड़कियां भी लगातार स्क्रीन मे डूबे रहने से यही मोबाइल लैपटॉप उनको पतन की राह पर ले जा रहा है इसी की वजह से उनका मन मस्तिष्क विकृत होता जा रहा है सहनशीलता तो मानो खत्म ही होती जा रही है गुस्सा और चिड़चिड़ापन सातवे आसमान पर पहुंचता जा रहा है छोटे बड़ों का लिहाज खत्म होता जा रहा है अपने पराऐ से कैसे व्यवहार किया जाए भूलता जा रहा है युवा वर्ग जहां पहले एक और उठ बैठकर कुसंगति में पड़कर ही यह विकृति आती थी आज एकांत में बैठकर भी इन्हीं मोबाइल और लैपटॉप से युवा वर्ग पर घातक दुष्परिणाम पड़ रहे हैं इसके लिए जिम्मेदार व स्वयं है जब उसका मन नकारात्मकता की ओर ही रामण करता है तो वह नरक का रास्ताअपनाता है तो परिणाम होता है की मां-बाप दादा दादी चाचा चाचा भाई बहन अड़ोसी पड़ोसी सभी से व्यवहार में रूखापन बदतमीजी गुस्सा चिड़चिड़ापन और इस दौर से गुजरते हुए छोटी-छोटी बातों में तीव्र गुस्से की अग्नि में जलकर हिंसा का रास्ता अपना कर बहुत ही कम उम्र में की गई जरा जरा सी बातों में हिंसा कर वही युवा कानून की गिरफ्त में भी आ जाता है थानों के चक्कर लगाने पड़ते हैं वार्निंग के बाद भी वह नहीं समझ पाता और इस रहा को अपना कर वह अपराधी किस्म का बनता जा रहा है परिणाम समाज में देखने को मिलते हैं कोर्ट केस कचहरी के चक्कर में एक बार पढ़कर उसे भी वह अपनी गौरव यात्रा का हिस्सा मानता है और यही आदत उसकी कटघर से 12 ताड़ी की ओर ले जाते हुए उसे आदतन अपराधी बना देती है।

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