कार्तिक महात्म्य अध्याय 15

Listen to this article

जयपुर गोविन्द नगरी के धर्मावलंबियों ने लिए आर्ष संस्कृति दिग्दर्शक ट्रस्ट कार्तिक महात्म्य अध्याय 15 दिनांक 23/10/2022 श्री विष्णु भगवान की कृपा, हो सब पर अपरम्पार। कार्तिक मास का ‘कमल” करे पन्द्रहवाँ विस्तार।। राजा पृथु ने नारद जी से पूछा – हे मुनिश्रेष्ठ! तब दैत्यराज ने क्या किया? वह सब मुझे विस्तार से सुनाइए. नारद जी बोले – मेरे (नारद जी के) के चले जाने के बाद जलन्धर ने अपने राहु नामक दूत को बुलाकर आज्ञा दी कि कैलाश पर एक जटाधारी शम्भु योगी रहता है उससे उसकी सर्वांग सुन्दरी भार्या को मेरे लिए माँग लाओ. तब दूत शिव के स्थान में पहुंचा परन्तु नन्दी ने उसे भीतर सभा में जाने से रोक दिया. किन्तु वह अपनी उग्रता से शिव की सभा में चला ही गया और शिव के आगे बैठकर दैत्यराज का सन्देश कह सुनाया. उस राहु नामक दूत के ऎसा कहते ही भगवान शूलपानि के आगे पृथ्वी फोड़कर एक भयंकर शब्दवाला पुरुष प्रकट हो गया जिसका सिंह के समान मुख था. वह नृसिंह ही राहु को खाने चला. राहु बड़े जोर से भागा परन्तु उस पुरुष ने उसे पकड़ लिया. उसने शिवजी की शरण ले अपनी रक्षा माँगी. शिवजी ने उस पुरुष से राहु को छोड़ देने को कहा परन्तु उसने कहा मुझे बड़ी जोर की भूख लगी है, मैं क्या खाऊँ? महेश्वर ने कहा – यदि तुझे भूख लगी है तो शीघ्र ही अपने हाथ और पैरों का माँस भक्षण कर ले और उसने वैसा ही किया. अब केवल उसका सिर शेष मात्र रह गया तब उसका ऎसा कृत्य देख शिवजी ने प्रसन्न हो उसे अपना आज्ञापालक जान अपना परम प्रिय गण बना लिया. उस दिन से वह शिव जी के द्वार पर ‘स्वकीर्तिमुख’ नामक गण होकर रहने लगा. विश्वजन कल्याणार्थ

(Visited 57 times, 1 visits today)